संसार में भू भाग के आधार पर होता है राशियों का भेद
आज हम बात करते है संसार में भू भाग के आधार पर होता है राशियों का भेद आप ने देख होगा की प्राय चलन में दो राशी यो का प्रयोग किया जाता है एक चन्द्र राशी दूसरी होती है सूर्य राशी लेकिन सभी जगह एक राशी से फल कथन कर देना उचित नहीं है ज्योतिष के मूल ग्रंथो और प्राचीन ऋषि मुनियों ने भी इस विषय बहुत स्पष्ट रूप से अपने अपने मत दिए है
इस तरह के मत सार्ष्टि खंड में पढने को मिल जाता है जो प्राचीन मूल ग्रन्थ है मानव जीवन में सम्बन्ध में राशी का फल देने वाले केवल चार ही ग्रह है जो की स्थानभेद के अनुसार अलग अलग फल देते है
यथा शश भूतो अर्थात चंद्रमा -केतुश्च्य जयंता -अर्थात गुरु भतिभर ज्योतिश्ताम अर्थात शुक्र -और सर्वत्र जिस से लग्न निर्धारित होता है वह त्र्लोक्य दीपो अर्थत रवि सूर्य शेष ग्रहों का प्रभाव भी राशी के अनुरूप होता है लेकिन इनका प्रभाव इसे सथानो जड़ जंगम और स्थावर के आलावा और किसी का वाश नहीं हो यही कारन है की आज भी पाश्चात्य देशो में सूर्य राशी को प्रधानता दी जाती है और जो चन्द्र प्रधान राशी के निवाशी है उन को चन्द्र राशी से ही फल कथन करना सही होगा -जहा पर सूर्य का प्रभाव हो वहा सूर्य राशी से फल कथन करना जरुरी होता है और जहा पर चन्द्र राशी प्रधान हो वहा चन्द्र राशी फल कथन करना उचित होता ही लग्न से फल कथन की एक ही प्द्त्ति है लेकिन गोचर के लिए जातक जिस समय जहा पर हो उसी ग्रह से फल कथन अनिवार्य है यदि व्यक्ति भारत में पैदा हुआ है और रोम रह रहा है तो शुक्र राशी की प्रधानता वहा चलेगी गोचर फल कथन के लिए यदि यही स्तिथि अमेरिका आदि में है वहा पर सूर्य राशी प्रधान है अथ वहा पर सूर्य राशी किप्र्धनाता होगी गोचर फल कथन के लिए
अर्थात भूमि का पूर्व व् पश्चिम भाग सूर्य के प्रभाव में
पश्चिम का व् उत्तर के बिच का भाग शुक्र के प्र्भाप्र्भ्व में
उत्तर का भाग गुरु में दक्षिण का भाग चन्द्र के प्रभाव में आता है
वास्तव में हमारे ऋषि मुनि नि संदेह उच्च श्रेणी के वैज्ञानिक व् भू गोल शास्त्री थे
पंडित ध्यान चन्द्र कुश ज्योतिषचार्य
सम्पर्क -९३१९४००७२१
इस तरह के मत सार्ष्टि खंड में पढने को मिल जाता है जो प्राचीन मूल ग्रन्थ है मानव जीवन में सम्बन्ध में राशी का फल देने वाले केवल चार ही ग्रह है जो की स्थानभेद के अनुसार अलग अलग फल देते है
यथा शश भूतो अर्थात चंद्रमा -केतुश्च्य जयंता -अर्थात गुरु भतिभर ज्योतिश्ताम अर्थात शुक्र -और सर्वत्र जिस से लग्न निर्धारित होता है वह त्र्लोक्य दीपो अर्थत रवि सूर्य शेष ग्रहों का प्रभाव भी राशी के अनुरूप होता है लेकिन इनका प्रभाव इसे सथानो जड़ जंगम और स्थावर के आलावा और किसी का वाश नहीं हो यही कारन है की आज भी पाश्चात्य देशो में सूर्य राशी को प्रधानता दी जाती है और जो चन्द्र प्रधान राशी के निवाशी है उन को चन्द्र राशी से ही फल कथन करना सही होगा -जहा पर सूर्य का प्रभाव हो वहा सूर्य राशी से फल कथन करना जरुरी होता है और जहा पर चन्द्र राशी प्रधान हो वहा चन्द्र राशी फल कथन करना उचित होता ही लग्न से फल कथन की एक ही प्द्त्ति है लेकिन गोचर के लिए जातक जिस समय जहा पर हो उसी ग्रह से फल कथन अनिवार्य है यदि व्यक्ति भारत में पैदा हुआ है और रोम रह रहा है तो शुक्र राशी की प्रधानता वहा चलेगी गोचर फल कथन के लिए यदि यही स्तिथि अमेरिका आदि में है वहा पर सूर्य राशी प्रधान है अथ वहा पर सूर्य राशी किप्र्धनाता होगी गोचर फल कथन के लिए
अर्थात भूमि का पूर्व व् पश्चिम भाग सूर्य के प्रभाव में
पश्चिम का व् उत्तर के बिच का भाग शुक्र के प्र्भाप्र्भ्व में
उत्तर का भाग गुरु में दक्षिण का भाग चन्द्र के प्रभाव में आता है
वास्तव में हमारे ऋषि मुनि नि संदेह उच्च श्रेणी के वैज्ञानिक व् भू गोल शास्त्री थे
पंडित ध्यान चन्द्र कुश ज्योतिषचार्य
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